भारतीय शेयर बाजार में यूं तो कई सारे फैक्टर्स काम करते हैं, जिनकी वजह से मार्केट में उठा-पटक होती है. ग्लोबल टेंशन, पैसे में तेजी या गिरावट, सोने में मंदी. इन सब कारकों का प्रभाव सीधे तौर पर मार्केट पर पड़ता है. लेकिन, इनके बीच एक कारण और भी जिनकी वजह से घरेलू बाजार पर असर दिखता है. वह है विदेशी निवेशकों का रुख. इन दिनों विदेशी निवेशकों का मोह भंग हो गया है. वह दलाल स्ट्रीट से भयंकर बिकवाली कर रहे हैं. आइए आपको इसके पीछे का कारण बताते हैं.
FIIs की बिकवाली का सिलसिला
हाल ही में, विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPIs) ने भारतीय शेयर बाजार में अपनी हिस्सेदारी को कम करने का रुख अपनाया है. नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) के आंकड़ों के मुताबिक, शुक्रवार को FIIs ने 15,208 करोड़ रुपये की खरीदारी की, लेकिन इसके साथ ही 14,198 करोड़ रुपये के शेयर बेचे, जिसके परिणामस्वरूप उनकी शुद्ध खरीदारी केवल 1,009 करोड़ रुपये रही. हालांकि, इस एक दिन की खरीदारी को छोड़ दें, तो साल 2025 में FIIs लगातार नेट सेलर बने हुए हैं. इस साल अब तक उन्होंने ₹1.24 लाख करोड़ से अधिक के शेयर बेचे हैं, जो भारतीय बाजार के लिए एक बड़ा झटका है. दूसरी ओर, घरेलू संस्थागत निवेशक (DIIs) ने ₹9,342 करोड़ की शुद्ध खरीदारी के साथ बाजार को संभालने की कोशिश की है.
क्यों रूठे हैं विदेशी निवेशक?
विदेशी निवेशकों के इस रुख के पीछे कई कारण हैं. सबसे पहले, वैश्विक अनिश्चितता और भू-राजनीतिक तनाव ने निवेशकों को सतर्क कर दिया है. वैश्विक बाजारों में अस्थिरता, खासकर अमेरिका और यूरोप में ब्याज दरों में बदलाव की आशंका, ने FIIs को जोखिम से बचने के लिए प्रेरित किया है. भारत जैसे उभरते बाजारों (Emerging Markets) में निवेश कम करने की उनकी रणनीति साफ दिखाई दे रही है. एक रिपोर्ट के अनुसार, FIIs का भारतीय इक्विटी में हिस्सा 18.8% पर है, जो कि अन्य उभरते बाजारों (चीन को छोड़कर) के औसत 30% से काफी कम है. यह दर्शाता है कि भारत में अभी भी निवेश की गुंजाइश है, लेकिन वैश्विक पूंजी का रुझान फिलहाल कमजोर है.
दूसरा बड़ा कारण है भारतीय बाजार का मूल्यांकन. निफ्टी 50 का वर्तमान प्राइस-टू-अर्निंग (PE) अनुपात 22.6 है, जो इसके एक साल के औसत 22.15 से अधिक है. यह संकेत देता है कि बाजार कुछ महंगा हो सकता है, जिसके चलते FIIs अपनी हिस्सेदारी कम कर रहे हैं. इसके अलावा, कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि भारत की मैक्रो-इकनॉमिक स्थिति, जैसे कि कमजोर निर्यात वृद्धि और बढ़ती महंगाई, भी निवेशकों के उत्साह को कम कर रही है.
क्या है भविष्य की उम्मीद?
क्या विदेशी निवेशक जल्द ही भारतीय बाजार में वापसी करेंगे? यह सवाल हर निवेशक के मन में है. विशेषज्ञों का मानना है कि भारत की दीर्घकालिक विकास कहानी अभी भी मजबूत है. एक सामान्य से बेहतर मानसून की भविष्यवाणी, बढ़ता खुदरा निवेश, और मजबूत घरेलू मांग बाजार को सहारा दे रहे हैं. Iconic Wealth की एक रिपोर्ट के अनुसार, अगले दशक में भारत की ग्रोथ स्टोरी में वैश्विक पूंजी की हिस्सेदारी बढ़ने की संभावना है. इसके अलावा, FIIs ने पिछले कुछ सालों में अपनी रणनीति बदली है. जहां पहले वे केवल निफ्टी 50 जैसे लार्ज-कैप शेयरों में निवेश करते थे, अब वे निफ्टी 500 की 80% कंपनियों में रुचि दिखा रहे हैं. यह बदलाव भारतीय बाजार की गहराई और अवसरों को दर्शाता है.
निवेशकों के लिए सबक
विदेशी निवेशकों की बिकवाली ने बाजार में अस्थिरता जरूर बढ़ाई है, लेकिन यह निवेशकों के लिए एक अवसर भी हो सकता है. विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि ऐसी स्थिति में लंबी अवधि के लिए निवेश की रणनीति बनाना बेहतर है. DIIs की मजबूत खरीदारी और भारत की आर्थिक संभावनाएं बाजार को स्थिरता दे रही हैं. अगर वैश्विक अनिश्चितता कम होती है और भारत सरकार की नीतियां निवेशकों का भरोसा बढ़ाती हैं, तो FIIs की वापसी मुमकिन है. तब तक, निवेशकों को धैर्य और सतर्कता के साथ बाजार की चाल पर नजर रखनी होगी.
विदेशी निवेशकों का भारत से मोहभंग अस्थायी हो सकता है, लेकिन इसके पीछे वैश्विक और घरेलू दोनों कारण हैं. बाजार की मौजूदा स्थिति निवेशकों के लिए चुनौतीपूर्ण है, लेकिन भारत की मजबूत आर्थिक बुनियाद और DIIs का सहारा इसे संभाले हुए है. क्या FIIs जल्द लौटेंगे? यह समय और वैश्विक परिस्थितियों पर निर्भर करेगा.